300 GHAZALS 💐
दोस्तो आदाब ! पेश है इस ब्लॉग की ये मेरी तीन सौवीं ग़ज़ल.. लगभग बीस-बाईस साल पहले मैंने अपने अदबी सफ़र का आग़ाज़ किया था..पहली रचना "अफ़साना-- गुमनाम जज़्बे..बीसवीं सदी..उर्दू की बेहद मशहूर पत्रिका " में जून 2000 में प्रकाशित हुई थी..फिर उन्हीं दिनों कुछ ग़ज़लें और कहानियां "शायर" "पालिका समाचार" गुलाबी किरन "पाकीज़ा आंचल "फ़िल्मी दुनिया" "उर्दू चैनल" वगैरह में लगातार आती रहीं..उसके बाद मैं "दिल्ली प्रेस.. सरिता ग्रुप" के लिए केवल कहानियां लिखने लगा..उसमें मेरी दर्जनों स्वीकृत रचनाएं एडवांस में पड़ी रहती थींं..ये सारी रचनाएं मेरे पुकारू नाम ( जमशेद अख़्तर ) की अमानत बनीं.. काफ़ी मन लगा तब ये सब करने में..फिर रोज़गार की मसरूफ़ियत के कारण कमी आती गई.. और फिर कई सालों तक मैं इससे एकदम दूर भी रहा...अब फिर से शौक़ जागा है.. लेकिन रफ़्तार धीमी है.. दुआ करें कि मैं अपने इस अधूरे सफ़र को ढंग से आगे बढ़ा सकूँ और पूरी संजीदगी के साथ साहित्य की सेवा कर सकूँ... आप सभी के बेपनाह प्यार के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.. आभार 💐💐 #ग़ज़ल 💐 ऐ सनम, आओ चल